खेल ----आखिर कब तक ? - 2 - अंतिम भाग

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खेल ----आखिर कब तक ? (2) सुनते ही आरती की छठी इंद्रिय सचेत हो उठी, एक तिलमिलाहट ने उसके अन्तस को झकझोर दिया, एक साया सा उसकी आँखों के आगे से आकर गुजर गया, अपनी बनायी हद की बेडियाँ तोडने को वो मजबूर हो उठी आखिर उसकी सगी भांजी की ज़िन्दगी का सवाल था । आज हर ताला टूटने को व्यग्र हो उठा, खुद को दी कसम से खुद को मुक्त करने का वक्त था । “ बडी दी, आप से अब जो मैं कहने वाली हूँ, ध्यान से सुनना पूरी बात । शायद ये बात मैं कभी न बताती और