दास्ताँ ए दर्द ! - 2

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दास्ताँ ए दर्द ! 2 रवि पंडित जी ! ओह ! अचानक कितना कुछ पीछे गया हुआ स्मृति में भर जाता है | रीता व देव की देखा-देखी रवि पंडित जी भी उसे दीदी कहने लगे थे | यानि वहाँ वह सबकी दीदी ही थी, एक ऎसी दीदी जो वैसे तो हर जात-बिरादरी से अलग थी लेकिन वैसे ब्राह्मण थी, पंडिताइन ! अब उसका क्या किया जाए जब ऊपर से ही उसने ब्राह्मण-कुल में जन्म लिया था | रवि भी कुछ वर्ष पूर्व भारत से आकर वहाँ बस गए थे, पता नहीं उनकी ज्योतिष विद्या में कितना दम था पर वे पंडिताई तो करते