बेनाम आशिक।

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जिंदगी के ५०बे वसंत पार कर चुकी मैं यानी सुलभा ...जिंदगी कट रही थी । एक रूटीन में होता है न हम औरतो में ..बंध जाता है मन ..सुबह संजय की बेड टी से शुरू होती फिर नाश्ता उनका ऑफिस और मेरी टीवी सास - बहु के सीरियल और कभी - कभी किट्टी पार्टी और गॉसिप ।बेटे - बहु अपनी जिंदगी में मस्त दूसरे शहरो में अपने परिवारों में व्यस्त और पति अपने काम । ..दुनियॉ की नजरों में एक सुखी इन्सान थी मैं ।..जिंदगी से कोई शिकायत भी नहीं थी पर जो खाली पन मेरे अंदर पल रहा था