मधुरिमा - भाग (२) - अंतिम भाग

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मझे आते आते शाम हो चली थी, रास्ते भर खेतों से लौटते हुए लोग मिल रहे थे , डूबते सूरज की लालिमा भी फीकी पड़ती जा रही थी, चरवाहे भी जानवरों को चरा कर घर लौट रहे थे, जानवरों के गले में बंधी हुई घंटियों की आवाज एक के बाद एक सुनाई दे रही थी और कुछ पनिहारियां भी पानी भरकर आ रही थी कुछ पानी भरने जा रही थी,मैं घर वापस आ गया और घर आकर मैंने किसी से भी कुछ नहीं कहा।। मां ने पूछा भी कि कहां था दिनभर? मैंने कहा दोस्तों के साथ फिर मां ने भी