कच्चा गोश्त - 2 - अंतिम भाग

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कच्चा गोश्त ज़किया ज़ुबैरी (2) यही सब सोचती मीना घर की ओर चली जा रही थी कि सामने से सब्बो मटकने की कोशिश कर रही थी। मीना के भीतर उसे देख कर एक उबाल सा उठा। लगता था प्रकृति जैसे उसकी गर्दन बनाना ही भूल गई थी। धड़ लम्बा और छोटी टांगें। कंधे को एक तरफ़ झुकाए हुए थी। वह अपनी छोटी छोटी टांगों से मीना की तरफ़ लगभग भागी चली आ रही थी।... उसे पहले से ही मालूम था कि सरपंच आज मदन मोहन की मां को क्या फ़ैसला सुनाने वाला है। सारा गांव उसे बुद्दू समझता था, मगर