कौआ मुँडेर पर लेखिका : श्रुत कीर्ति अग्रवाल मुँडेर पर कौआ काँए-काँए किये जा रहा था। मन अनसा गया उनका... चुप हो जा नासपीटे, अब नहीं अच्छा लगता किसी का आना-जाना। आज कल तो वो अपनी जिंदगी का लेखा-जोखा ले कर बैठी हुइ हैं कि क्या ठीक किया और क्या गलतियाँ कीं। छोटी उमर में ब्याह कर आईं और जान लगाकर सास ससुर , नन्द देवर की सेवा में जुट गईं। जो अपने आप को कभी कोई अहमियत नहीं दी तो भगवान ने भी बड़ाई प्रशंसा देने में कभी कोई कसर नहीं रखी। फिर समय बदला कि धीरे-धीरे वो घर के लोग