इनसानी नस्ल खिड़की से घुसती गरम हवा अपने साथ पत्तियाँ-तिनके और सूखी, बेकार की चीज़ें उड़ाकर ला रही थी। ट्रेन लू के थपेड़ों को चीरती आगे बढ़ रही थी। गरमी इस ग़ज़ब की थी कि खिड़की बंद करना मुश्किल था। प्यास से गला और होंठ ख़ुश्क हो रहे थे। गरम पानी का घूँट भर नवाब ने अपना गला तर किया और रूमाल से अपने चेहरे पर जमी धूल की परत को पोंछा। उसका ज़ेहन भटक रहा था। माँ की बीमारी का तार उसे कल मिला था। तब से अब तक उसके गले से खाने का एक कौर भी नीचे नहीं