कुबेर डॉ. हंसा दीप 3 नींद की राह तकते अनींदे बच्चे को बहुत याद आती माँ की और सोचता रहता माँ के बारे में, लेकिन साथ ही साथ वह पीठ पर पड़ी मार भी याद आती थी जिसकी चोट थके-हारे-भूखे बच्चे के ज़ेहन से जा नहीं पाती। बहुत गुस्सा था। इतना गुस्सा न जाने किस पर था, ख़ुद पर था, नेताजी पर था, बहन जी पर था या फिर माँ-बाबू पर था मगर था तो सही और बहुत गहरा था। घर से भागे किसी भी भूखे बच्चे के लिए रास्ते के ढाबे शरणगाह बनते हैं। ऐसे होटल में काम करना