मेरा घर कहाँ

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मेरा घर कहाँ लाली धोबिन की मिट्टी तभी से पलीद थी जब से उसका मरद मरा था। तीन बच्चों के संग अड्डे पर जाना और घर-घर से जाकर कपड़े समेटना अब उसके बस की बात नहीं रह गई थी। छोटा लड़का साल भर का था। कभी गरम इस्तरी पकड़ लेता तो कभी धुले कपड़े पर अपना लकड़ी का चटुवा फ़ेंक धब्बा लगा देता। तंग आकर लाली ने घरों में काम करने की ठानी। बरतन, झाड़ू और आटा गूँधने से उसके पास इतने पैसे आने लगे कि वह चैन से रोटी के साथ लहसुन की चटनी खा सकती थी। बड़ी लड़की