फुलवा

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फुलवा उफ़ ! अभी तक महारानी नहीं आयीं, घडी देखते हुए मेरे मुँह से स्वत: निकल गया | सुबह का समय वैसे भी कामकाजी औरतों के लिए बहुत कठिन होता है, एक हाथ और दस काम, क्या –क्या करें? आखिर इंसान हैं या मशीन, ऊपर से कामवाली का ना आना | सिंक में पड़े हुए बर्तन मुँह चिढ़ा रहे थे | करना तो पड़ेगा ही, सोचते हुए मैंने स्वेटर की बाँहें ऊपर चढाते हुए बर्तन माँजने का जून उठा लिया | तभी डोर बेल बजी | “अरे ! कोई गेट तो खोल दो या ये जिम्मेदारू भी मेरी ही है,”मैंने