नई हुकूमत हाजरा अधेड़ उम्र की दहलीज़ पारकर लुटी-पिटी तन व तन्हा शौहर के घर से जब माँ की चौखट पर पहुँची तो जबानी की दौलत लुटा चुकी थी। खिचड़ी होते बाल, रूखा चेहरा, वीरान आँखें और साथ में थे चंद रंग-उड़े टीन के बक्से जो रिक्शेवाले ने दरवाज़े के अंदर धकेल दिए थे।आँगन में कबूतरों को दाना डालती हाजरा की माँ ने फ़ीकी आँखों से बेटी को ताका फि़र जज्वात से बिलबिला घुटनों पर हाथ रख बड़ी मुश्किलों से उठी और बेटी की बलाएँ ले, उसे छाती से लिपटा सुबक पड़ी। माँ-बेटी जब गले मिल चुकीं तो एकएक हाजरा