कौन दिलों की जाने! - 34

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कौन दिलों की जाने! चौंतीस रविवार का दिन अभी सुबह के पाँच बजने में कुछ मिनट बाकी थे। यद्यपि आलोक की नींद खुल चुकी थी, फिर भी उसने अभी बेड नहीं छोड़ा था। उसके मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल की स्क्रीन पर रानी का नाम आ रहा था। उसने फोन ऑन किया। उधर से आवाज़़ आई — ‘गुड मार्निंग आलोक जी! क्या अभी सो रहे थे?' ‘वेरी गुड मार्निंग! जाग रहा हूँ, किन्तु अभी लेटा हुआ हूँ। इतनी सुबह कैसे?' ‘कल फ्लैट में शिफ्ट कर लिया था। घर से बाहर किसी अनजान जगह पर ज़िन्दगी में पहली बार रात के