निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 29

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उसका ख़याल दिल से कभी जाता न था…बात बहुत पुरानी है--१९३४ की। पितामह (साहित्याचार्य पं. चंद्रशेखर शास्त्री) द्वारा अनूदित 'महाभारत' के प्रचार-प्रसार के लिए पिताजी भागलपुर गए हुए थे। वहाँ के किसी गेस्ट हाउस में किराए के एक कमरे में दुतल्ले पर ठहरे थे। अचानक और अकारण पितामह ने तार भेजकर पिताजी को तत्काल घर (इलाहाबाद) लौट आने का आदेश दिया। जिस दिन पिताजी को वह तार मिला, उसी रात की गाड़ी से पिताजी ने इलाहाबाद के लिए प्रस्थान किया और दूसरे दिन इलाहाबाद पहुंचे। स्टेशन से बाहर निकलते हुए उन्होंने एक अख़बार खरीद लिया और इक्के में बैठकर दारागंज के