निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 28

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'जाने कौन साथ सफ़र करता है…!'उस रात शाही के साथ किसी तरह स्वदेशी कॉलोनी लौट तो आया, लेकिन मैं बहुत क्लांत था। रास्ते में शाही ने मुझसे कुछ नहीं पूछा। किसी कटे वृक्ष की तरह मैं शय्या पर जा गिरा और शायद अत्यधिक अशक्तता के कारण जल्दी ही सो भी गया। वह विचित्र बेहोशी की नींद थी।... दूसरे दिन फ्रेश होने के बाद जब शाही के साथ चाय-नाश्ते के लिए बैठा, तो शाही ने तेरहवीं सीढ़ी पर पिछली रात क्या हुआ था, यह जानना चाहा। मैंने विस्तार से उन्हें वह सब बताया, जो घटित हुआ था।सारा विवरण सुनकर वह गंभीर हो गए