निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 23

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"चालीस दुकानवाली आत्मा का 'विशुद्ध' प्रेम"...जिन दिनों चालीस दुकानवाली आत्मा के साथ मेरी प्रगाढ़ प्रिय-वार्ता चल रही थी, उन्हीं दिनों की बात है। स्वदेशी में अनियमित वेतन-भुगतान के कारण मजदूरों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। मिल-गेट पर आये दिन उनका धरना-प्रदर्शन होता था और मजदूर-नेताओं के गर्मजोशी से भरे भाषण होते थे। लाल झंडे-बैनरों तले माहौल गर्म होता जा रहा था। सांकेतिक हड़ताल की अनपेक्षित छुट्टियाँ भी हमें मिल जाती थीं और हम उनका बड़ा आनंद उठाते थे। शाही, मेरी और ईश्वर की दिन-भर की गोष्ठियां लगतीं । मज़े का दिन गुज़रता और रातें तो परा-जगत् में विचरण की