निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 22

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'मैं भयावह काली बिल्ली-सी नहीं,भासमान उज्ज्वल छाया-सी हूँ--हवा में तरंगित'...पिछले डेढ़-दो महीने की वार्ता में चालीस दुकानवाली आत्मा ने कई टुकड़ों में मुझे अपनी पूरी जीवन-कथा सुनायी थी। उसकी कथा में जीवन के सारे रंग थे--उत्साह-उमंग के, सुख के, दुःख के और गहरे अवसाद के रंग। खून के जमे हुए थक्कों-से स्याह रंग बहुत व्यथित करनेवाले रंग थे, जो आँखों में आंसू बनकर उतर जाना चाहते थे। मात्र तेईस-चौबीस वर्ष के जीवन में उसने बहुत कुछ सहा-भोगा था। मुझे कई बार लगता कि वह अपनी कहानी सुनाने के लिए ही मुझ से जुड़ी है, लेकिन शायद मैं बहुत सही नहीं