नारी हूँ...

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नारी हूँ... जरा ठहरो तो अपनी जथा कहूँ नारी हु.....सुन सकते हो तो, थोड़ी सी अपनी व्यथा कहूँ बात कुछ नयी नहीं है, चीरकाल पुरानी है बांध के रखा ह्रदय में पीड़ा वो तुझे सुनानी है चीर काल हो, या वेद मॉल, हर बार हा तुमने भेद किया कहीं वेद ना पढ़ ले माला ना जप ले, कहीं ये जाके मंदिर न धर ले अनगिनत धर्म कार्य से दूर किया कह कर की, नारी रूप क्यों अवतार हुए अपार ज्ञान क्षमता धर कर लोगो के तानो से दो चार हुए गार्गी, हो या अपाला पहले कितनी कुदृष्टि तुम्हारी थी झेली हर