भदूकड़ा - 12

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घर के सारे आदमियों ने नाश्ता कर लिया तो काकी की आवाज़ गूंजी- ’अबै उठियो नईं लला. बैठे रओ. कछु जरूरी बात करनै है तुम सें.’ थाली में हाथ धोते बड़े दादा ने काकी की तरफ़ देखा, और थाली खिसका के वहीं बैठे रहे. ’इत्ते साल हो गये, हमने सुमित्रा खों कछु दुख दओ का?’ ’आंहां कक्को’ ’ऊए खाबे नईं दओ का?’ काय नईं? ऐन दओ तुमने.’ ’तौ जा बताओ, सुमित्रा, जिए हम राजरानी मानत, जी की तारीफ़ करत मौं नईं पिरात हम औरन कौ, ऊ ने जा चोरी काय करी? औ केवल जा नईं, जानै कितेक दिनन सें कर