निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 15

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क्या ख़ता थी मेरी, मैं कैसी ख़ता कर गया,वो मेरा ही पता था, मुझे लापता कर गया !दूसरे दिन सुबह मैं देर से जागा। अमूमन सुबह की चाय मैं ही बनाता था और 'बेड टी' लेते हुए शाही हर सुबह उसकी पहली चुस्की के साथ एक ही वाक्य बोलते थे--'ओह, आँख खुली... । ' लेकिन उस दिन शाही ने आठ बजे, सुबह की चाय बनायी और मुझे जगाने की कोशिश की। मैंने करवट बदलकर उनसे कहा--यहाँ रखो न कप, उठता हूँ भाई !' शाही कप रखकर स्नान-ध्यान करने में लग गए और मैं सोता रहा। सुबह ९ बजे नींद खुली,