काठ का उल्लू

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गनेसीलाल एकटक, बैठक में रखी, उलूक- प्रतिमा को देख रहे हैं. उनका बड़ा बेटा मोहित, इसे किसी मेले से ले आया था. कहता था- “पिताजी क्या नक्काशी है...दूर से देखो तो साक्षात् उलूक का भ्रम होता है!” उन्होंने विरोध किया था. उनके हिसाब से तो मनहूस जीव की प्रतिकृति, मनहूसियत ही फैला सकती थी. किन्तु मोहित अड़ गया था, “यह लक्ष्मी का वाहन है...अशुभ कैसे हो सकता है?!” बच्चे का बचकाना आग्रह तो फिर भी टाला जा सकता था; किन्तु बच्चे की अम्मा ईसुरी, अपने लाल की हर बात मानती. दो दो जाहिलों से निपटना, गनेसी के बस में कहाँ