रुक सत्तो..

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रुक सत्तो!एक बेहद सर्द दिन! दोपहर के बावजूद बाहर घटाटोप अंधकार है, जो खिड़की के रास्ते शारदा के मन-मस्तिष्क में उतरता जा रहा है। हलकी बूँदा-बाँदी बाहर भी हो रही है और अंदर भी। आसमान में रह-रह कर बिजली चमक रही है और दिल में टीस। प्रवासी बच्चों के विछोह ने स्वर्गवासी पति की यादों पर भी धार रख दी है, सो वो उसके वजूद को लहूलुहान कर रही हैं। व्हाट्सप्प के उस मैसेज को आँखों ने स्कैन करके अंदर रख लिया था और दोपहर से बार-बार रिवाइंड कर के देख रही थीं कि शायद आँखों में घिरी बदली के