निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 13

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काश, समुद्र का जल पीने लायक़ होता...ईश्वर सामान्य-जन से भिन्न होते हैं। भिन्न होते हैं, तभी तो ईश्वर होते हैं। मेरे मित्र ईश्वर भी उस कच्ची उम्र से ही थोड़े भिन्न थे। उन्होंने कोई व्यसन नहीं पाल रखा था, पूजा-पाठी थे, कंठी-माला धारण करते थे और मेरे-शाही के धूमपान के व्यसन तथा कभी-कभी पान-तम्बाकू-भक्षण की भर्त्सना करते थे। मुझे लगता है, आरम्भ से ही उनका झुकाव भगवद्भक्ति की ओर था। बाद में सुनने में आया था कि उन्होंने इस दिशा में बहुत गति भी पायी थी।खैर, उस रात ईश्वर के घर परा-संपर्क की सफलता से कई लाभ हुए। सबसे बड़ा