औरतों की दुनिया

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औरतों की दुनिया (कहानीः पंकज सुबीर) ‘‘आज फिर देर हो गई ?’’ सुमित्रा ने पति के कंधे पर टँगा बैग उतारते हुए धीमे से पूछा। ‘‘हाँ, आज भी वही सब हुआ, पूरे दिन कचहरी में खड़ा रहा तब जाकर कहीं नाम की पुकार लगी और फिर कुछ नहीं हुआ वही अगली तारीख मिल गई।’’ रूपेश ने थके हुए स्वर में उत्तर दिया। पति की मनःस्थिति तथा थकान को भाँपकर सुमित्रा ने आगे कोई प्रश्न नहीं किया। बैग लेकर चुपचाप अंदर चली गई। रूपेश वहीं सोफे पर ही अधलेटा हो गया। सारा शरीर टूट रहा है। कोर्ट और कचहरी में खड़ा