फैसला - 1

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फैसला (1) शाम की ट्रेन थी बेटे की अभी सत्ररह साल का ही तो है राघव पहली बार अकेले सफर कर रहा है उसे अकेले भेजते हुए मेरा कलेजा कांपा तो बहुत फिर भी खुद को समझा के उसे ट्रेन में बिठा आई सारी दुनिया से लड़ने वाली मै बस यहीं आकर कमजोर पड़ जाती हूँ, क्या करूँ चिड़िया की तरह अपने पंखो में सेंत सेंत कर पाला है अपने कलेजे के टुकड़े को मेरी जान, मेरा राघव, मेरा ईकलौता बच्चा मेरे जीने का बहाना --- वरना जिन्दगी तो रेगिस्तान बन कर रह ही गई थी