अनोखी वफ़ा राजेश कुमार भटनागर जब सांझ गहराकर काली पड़ने लगती और रात का अंधेरा अपनी बाहें फैलाने लगता तो उस अंधेरे से कहीं अधिक घोर अंधेरा छाने लगता उसके मन में । उसका मन विषाक्त हो उठता और फिर वह खेतों के बीच से दौड़ता हुआ अपनी दर्द भरी आवाज़ों से शांत अंधेरे को झकझोरता चला आता गांव की लम्बी सूनी सड़क पर जहां से ठीक नौ बजे स्यौहारा को बस जाया करती । वह बस के आने से पहले ही आकर सड़क के बीचों-बीच लेट जाता । बस ड्राइवर ही क्या उस इलाके के सभी लोग इस बात