भदूकड़ा - 1

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जिज्जी….. हमें अपने पास बुला लो…” बस ये एक वाक्य कहते-कहते ही कुंती की आवाज़ भर्रा गयी थी. और इस भर्राई आवाज़ ने सुमित्रा जी को विचलित कर दिया. मन उद्विग्न हो गया उनका, जैसा कि हमेशा होता है. जितनी परेशान कुंती न हो रही होंगीं, उतनी सुमित्रा जी हो गयी थीं. मोबाइल पर तो बस इतना ही कह पाईं-“ का हुआ कुंती? इतनी परेशान काय हो? का हो गओ? आवै की का है, आ जाओ ई मैं पूछनै का है?”आगे और भी कुछ कहना चाहती थीं सुमित्रा जी, लेकिन दूसरी तरफ़ से फोन कट गया. सुमित्रा जी ने