गुरप्रीत

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धीरे-धीरे दिन हफ्ते महीने बीत चले है। अब साल खत्म होने को है। जैसे-जैसे परीक्षा का समय निकट आ रहा है, वैसे-वैसे मेरे दिल की धड़कनों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। बचपन से ही मुझे परीक्षा के इस माह से बहुत डर लगता आया है। अब फिर से होली के साथ यह महीना किसी काल सर्प की भांति अपना मुँह बॉय खड़ा है। वो गरिमियों की लू के थपेड़ों वाली सुनसान सड़कें जिस पर सिर्फ आइस क्रीम वाले की डुगडुगी की आवाज गुंजाये मान रहा करती है। वह दोपहर शायद किसी अमावस की रात से भी ज्यादा भयानक होती