निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 4

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निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... (४) पूज्य पिताजी ने अपने एक लेख 'मरणोत्तर जीवन' में लिखा है--"मनुष्य-शरीर में आत्मा की सत्ता सभी स्वीकार करते हैं। शरीर मरणशील है, आत्मा अमर। मृत्यु के बाद शरीर को नष्ट होता हुआ--जलाकर, गाड़कर या अपचय के द्वारा--सभी देखते हैं, लेकिन आत्मा का क्या होता है? वह कहाँ जाती है? क्या करती है? शरीर के नष्ट होने के बाद उसका अधिवास कहाँ होता है? क्या इस जगत से उसका सम्बन्ध बना रहता है? क्या वह व्यक्ति-विशेष का ही प्रतिनिधित्व करती है? ये और इससे सम्बद्ध अन्य अनेक प्रश्न स्वभावतः मानव-मन में उठते रहते हैं। लेकिन आज