चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख - 3

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चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (3) उस रात कुंवर चुपचाप चले गये | न कुछ बोले न ही उनके चेहरे पर ही दुःख या पछतावा था बल्कि, उकताहट ही दिखी, उस दिन के बाद हम ने भी किसी से कुछ नहीं कहा | बस मन ही मन सोचते रहे इस नन्ही सी बेटी को लेकर कहाँ जायें | किस पर भरोसा करें | यही सोचते-बिचारते दस पंद्रह दिन और बीत गये | हम बिना कुछ बोले अपना काम धाम पहले की तरह ही निपटाते रहे | माँ बेटे दोनों को यही लगा, अब इसने समझौता कर लिया है |