अतरंगी ज़िन्दगी...

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1). राहें......है चाह राहगीर को राह खत्म हो जाने कीहै चाह राहगीर को मन्ज़िल पाने कीराह में थका वो राहगीर देखता है बस एक बूंद उस पानी को ,जिससे आस है उसे अपनी प्यास बुझ जाने की ,होगी अवश्य ही कड़ी धूप उस राहगीर को तप जाने की पर क्या चिंता उसे जिसे ठंडक अपने सपनों के आशियाने की ,कुछ कुछ तो थी समता उस पथिक और अर्जुन में अवश्य हीतभी तो दोनों ने राहों में रहे रोडों की फिक्र ना की,,होगी लिखनी उसे अपनी दस्तान लहू लुहान कीहै चाह राहगीर को राह खत्म हो जाने की है चाह राहगीर को मन्ज़िल