मुख़बिर - 15

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मुख़बिर राजनारायण बोहरे (15) ब्याह कृपाराम की याददास्त बड़ी तेज है । जब उसका ब्याह हुआ तब वह दस बरस का रहा होगा, लेकिन उस दिन जब किस्सा सुनाने बैठा तो आंख मूंद कर इस तरह राई-रत्ती बात सुनाता चला गया जैसे अभी कल की कोई्र घटना बता रहा हो । पहले उसने अपने खानदान की कीर्ति उचारी -‘‘ हमारा कुल-खानदान घोसी के नाम से जग-जाहर है, पर हम असिल में गड़रिया हैं । हमारे बाप-दादा गाय-भैस चरात हते तो उन्हे सबि लोग ’गोरसी‘ ’गोरसी‘ कहत हते, बाद में गोरसी ते घोसी कहलान लगे। गड़रिया दो तरहा के होते हैं