वह इक्कीस का लम्बा छरहरा, कोमल सपनों की रंगीनियों से भरा नौजवान । नाम विवेक ।वह उन्नीस की दुबली पतली, देह के उभारों को सम्हालती ऐश्वर्य से भरी नवयुवती । नाम करिश्मा । हुआ कुछ नहीं बस ! पहली नजर के पहले प्यार वाली बात हो गई । कॉलेज केन्टीन से शुरू हुई मुलाकातें कुछ ही महीनों में शहर के विविध रेस्तरां से होते हुए शहर की सीमारेखा पार कर लांग ड्राइव में तब्दील हो गई ।साक्षात कामदेव के हाथों गढ़े गए शिल्प सी प्रतिकृति सा विवेक और नाजुक सी मोगरे सी कली साक्षात मेनका का रूप करिश्मा हाथों में हाथ