निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा ... 1

(14)
  • 11.6k
  • 5
  • 4.6k

[मित्रो, ये चर्चाएं कई किस्तों में पूरी होंगी और क्रमशः एक उपन्यास की शक्ल अख्तियार कर लेंगी शायद। आप इन्हें किस्तों में पढ़ते जाने का अवकाश निकालेंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी। ये चर्चाएं एक ओर मैं लिखता जाऊँगा, दूसरी तरफ आपके सम्मुख रखता जाऊँगा, इसमें काल का अंतर अथवा विक्षेप भी हो सकता है, जितना अवकाश मिलेगा, उतना ही लेखन हो सकेगा...! आपकी संस्तुति और आपके मंतव्य ही तय करेंगे इस लेखन का भविष्य। बस, आप इसे पढ़ने का श्रम करें, मुझे प्रसन्नता होगी। इस लेखन से बंधु-बांधवों के दीर्घकालिक अनुरोध की पूर्ति भी कर रहा हूँ। --आनंद] प्रथम हस्तक्षेप...