एक सफर जो शुरू हुआ इस कदर ,अब सोचती हूँ मैं आज ,तो मुस्कुराती हूँ फिर से होकर मगन l एक सफर मां से सहेली बनने का l हाँ ! एक सहेली , अपने बेटे की l जब पहली बार तुम्हें गोद में उठाया था उन नन्हीं ,नन्हीं उंगलियों को जब खोला था l सहमें दिल से जब तुम्हें पहली बार इन हाथों ने उठाया था , मुस्कुराते हुए इन आंखों में आंसू आए थे मगर । एक बेटी ,एक बहन ,फिर एक बीवी आज एक नई उपाधि मिल गई मुझे मगर एक मां की ,जो थी दुनिया की