आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) - अध्याय ७

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----अध्याय ७. अंश पर ही अधिकार नहीं ----- बच्चे कितने पैदा करना है, यह भी ज्यादातर पुरुष ही निर्णय लेता हैं क्यों? या घर वाले निर्णय लेते हैं क्यों? क्या नारी(माँ) की सहमति की जरुरत नहीं है? और आज भी अधिकतर ये चुनना आपसी सहमति से नहीं होता हैं क्यों? ----- जहां नारी-जाति का आदर-सम्मान होता है, वहां ऐसा नहीं हो सकता है जहां नारी-जाति का आदर-सम्मान नहीं होता है, वहां ऐसा ही होता है ----- जबकि दर्द नारी(माँ) को होता है, शरीर नारी का होता है, सहना नारी को पड़ता है, शरीर कमजोर नारी का होता है