मेरी कविताएं

  • 5k
  • 1.2k

1.लिखता हूँ, डरता हूँ, डर डर कर लिखता हूँ।लिखने से पहले, हर बात समझता हूँ।इस अमोघ शस्त्र लेखनी से, हर बात सही तो लिखता हूँ।फिर मैं क्यों डरता हूँ?लिखता हूँ, डरता हूँ,डर डर के लिखता हूँ। बना ढाल लेखनी को, उद्गार उठे जो अंतर में, उनको कागज पर लिखता हूँ।है बात सही सब जो मैं लिखता हूँ,बस यही सोच कर आगे बढ़ता हूँ। लेकिन क्या? करेगा स्वीकार जमाना,जो मैं लिखता हूँ।यही सोच कर डरता हूँ।लिखता हूँ, डरता हूँ,डर डर के लिखता हूँ। 2.जीवन के कुंद गलियारों में, मानव को फँसते देखा है।तनिक तनिक सी बातों पर, अपनों को रूठते देखा