वही बेचैनी, वही उत्सुकता, वही उतावलापन।जानता हूं, तू नहीं बताएगा और अपने मन में उमड़ते भावों को छिपाने की भरसक चेष्टा करता रहेगा लेकिन मै भी तेरा बाप हूं। सब कुछ समझ कर नासमझ बनना मुझे भी आता है।पिछले आधे घण्टें में बार बार अपनी जगह से उठकर कुछ कदम चलकर दरवाज़े की दरार में से झाँककर अन्दर देखने का असफल प्रयास कर वापस आकर एक उम्मीद के संग मेरे पास की खाली जगह पर बैठते हुए बीस बार देख चुका हूँ तुझे। वही घबराहट, वही हड़बड़ाहट, वही जिज्ञासा। बिलकुल वैसी ही जैसी किसी कठिन परीक्षा के वक्त एक विद्यार्थी के चेहरे