आज मैं सोचती रही कि नींद की सारी गोलियां एकसाथ खाकर अपनी इहलीला समाप्त कर लूं।इतनी बेबसी,इतनी लाचारी तो मैंने तब भी महसुस नहीं की थी जब विनय के पिता हार्ट अटैक से एकाएक चल बसे थे।हमें कुछ सोचने समझने का मौका तक नहीं मिल पाया था।वह तो अच्छा हुआ कि वैदेही का विवाह उनके रहते ही हो गया और शादी के तुरन्त बाद ही तो वह आस्ट्रेलिया चली गई थी।अब बेटी-दामाद दोनों ही वहाँ जॉब करते हैं तो उनका यहाँ आना भी नहीं होता।विनय की भी शादी चार साल पहले ही कर दी थी, आखिर लड़की भी उसी