मां का अंतिम समय 

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‘बस। अब और नहीं होता मुझसे। परेशान हो गई हूं मैं।’ उसके अंतिम कौर मुंह में डालते ही जूठी थाली उसके सामने से उठाते हुए बड़बड़ाती वह बोली। बादल गरजने के लिए जैसे अनुकूल वातावरण तलाश रहे थे।‘हिम्मत और शान्ति से काम लो स्नेहा। डॉक्टर के कहे अनुसार सिर्फ छह महीने ही है। मां का अंतिम समय सुख से गुजर जाये तो मन पर फिर सारी जिन्दगी कोई भार न रहेगा।’ हमेशा की तरह आज भी उसने एक दार्शनिक अंदाज में जवाब देते हुए अपनी जगह से खड़े होते हुए उससे कहा। ‘दुखी तो ये अपने कर्मों की वजह से होती