तेरे प्यार से इनकार नहीं

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नजरों को तेरे प्यार से इनकार नहीं है।अब मुझे किसी और का इन्तजार नहीं है।खामोश अगर हूं मैं तो ये वजूद है मेरा।तुम ये न समझना कि तुमसे प्यार नहीं है।इस बार अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर वापस लौटने से पहले उसने हिम्मत कर, उसे अपने मन की बात कह ही डाली। उसकी बात सुनकर एक बार वह जोर से हँस पड़ी। उसके गुलाबी गालों पर पड़े गड्ढे उसे एक बार फिर से लुभा गए।‘दोस्ती को प्यार में बदलना चाहते हो? ऐसा तो क्या देख लिया तुमने अमन मुझ में?’ वह मुस्कुराकर पूछने लगी।‘तुम्हारे नाम में ही कशिश है। बस!