हेमांगिनी को बीच-बीच में सर्दी के कारण बुखार हो जाता था और दो-तीन दिन रहकर आप-ही-आप ठीक हो जाता था। कुछ दिनों के बाद उसे इसी तरह बुखार हो आया। शाम के समय वह अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी। घर में और कोई नहीं था, अचानक उसे लगा कि बाहर खिड़की की आड़ में खड़ा कोई अंदर की ओर झांक रहा है। उसने पुकारा ‘बाहर कौन खड़ा है? ललित?’ किसी ने उत्तर नहीं दिया। जब उसने फिर उसी तरह पुकारा तब उत्तर मिला, ‘में हुं।’ ‘कौन?.... मैं कोन? आ, अन्दर आ।’