सास भी कभी बहू थी

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आज सरू जितनी खुश है उतनी ही उदास भी... जितनी उत्साहित है उतनी ही हताश भी... जितनी अतीत में गोते लगा रही है उतनी ही भविष्य में विचर रही है। वजह कोई खास न होते हुए भी बेहद खास है। रह-रह कर माँजी याद आ रहीं हैं। माँजी मतलब उसकी सास उमादेवी। क्या कड़क व्यक्तित्व था उनका.. जिंदगी के आठ दशक ठसक से बिताने के बाद भी रौब में कमी नहीं आयी थी। कलफदार सूती साड़ी और माथे पर बड़ी सी बिंदी में उनका रूप और भी निखर जाता था। हक और शक उनके खास अंदाज़ थे।