अब लौट चले - 8

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और में फिर हारी हुई सी बेड पर आकर लेट गई थी.. मन में काफ़ी जद्दोजहद थी कभी मन करता के क्यों ना गुम नाम ही हो जाऊं... किसी को कुछ भी ना पता चले... लेकिन कैसे...? बस एकबार मनु को जी भर के देख लूं... बस फिर कभी किसी के सामने नहीं आउंगी.... लेकिन उसे देखने भर से क्या मुझें सुकून मिलेगा...? शायद ये भी तो हो सकता हैं कि वो मुझें एकबार देखें और फिर मोहब्बत जाग जाए... वो तो मुझसे प्यार करता था... मेरे लिए तो उसने क्या नहीं किया इतने सालों तक यहां मेरी ही यादों के सहारे