अनुराधा - 4

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इस प्रकार में आने के बाद एक पुरानी आराम कुर्सी मिल गई थी। शाम को उसी के हत्थों पर दोनों पैर पसाक कर विजय आंखें नीचे किए हुए चुरुट पी रहा था। तभी कान मं भनका पड़ी, ‘बाबू साहब?’ आंख खोलकर देखा-पास ही खड़े एम वृद्ध सज्जन बड़े सम्मान के साथ सम्बोधित कर रहे हैं। वह उठकर बैठ गयाय़ सज्जन की आयु साठ के ऊपर पहुंच चुकी है, लेकिन मजे का गोल-मटोल, ठिगना, मजबूत और समर्थ शरीर है। मूंछे पक कर सफेद हो गई है, लेकिन गंजी चांद के इधर-उधर के बाल भंवरों जैसे काले है। सामने के दो-चार दांतो के अतिरिक्त बाकी सभी दांत बने हुए है। वार्निशदार जूते हैं और घड़ी के सोने की चेन के साथ शेर का नाखून जड़ा हुआ लॉकेट लटक रहा है। गंवई-गांव में यह सज्जन बहुत धनाढ्य मालूम होते है। पाक ही एक टूटी चौकी पर चुरुट का सामान रखा था, उसे खिसकाकर विजय ने उन्हें बैठने के लिए कहा। वद्ध सज्जन ने बैठकर कहा, ‘नमस्कार बाबू साहब।’