डोर – रिश्तों का बंधन - 8

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सुबह सुबह जैसे बारिश की बूंदों से नयना की नींद खुली। अभी वह पूरी तरह जाग नहीं पाई थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कमरे में बरसात कैसे आ सकती है, खिड़की भी तो बंद ही है। वह हैरान सी देख रही थी कि एक जानी पहचानी खनकती हुई मर्दाना हंसी उसके कानों में मिश्री सी घोलती चली गई। उसने मुड़ कर देखा, दरवाज़े की ओट में खड़ा वह शैतान पेट पकड़ कर हंसे जा रहा था। चिंटू! नयना चादर फेंक कर उठ खड़ी हुई और दौड़ कर चिंटू के गले लग गई। चिंटू ने भी नयना को कस कर सीने में छुपा लिया जैसे सारी दुनिया की बलाओं से उसे महफूज़ कर लेना चाहता हो। चाची कौन कहेगा आपका बेटा आई.ए.एस अफसर है, हरकतें तो इसकी आज भी बंदरों जैसी हैं। पूरा भिगो दिया मुझे। अच्छा है ना दीदी, कम से कम इस बहाने से तुम नहाई तो सही वरना तो पता नहीं नहाती भी हो या नहीं।