अतृप्त रिश्ते

(34)
  • 2.5k
  • 2
  • 679

अतृप्त रिश्तेआर 0 के0 लालअरे रुकना जरा, पहचाना तुमने। प्रभात ने उसे रोकते हुए कहा। शोभा ने भी आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, - "व्हाट ए प्लेज़ेंट सरप्राइज, तुम्हें देखकर। में कैसे नहीं पहचानूगी? यह तो ईश्वर की कृपा है कि काया में न रहने के बावजूद भी हम किसी की आत्मा को पहचान लेते हैं। तुम तो जीवन भर मेरे खयालों में ही बसे रहते थे। हमें दुख है हम एक दूसरे के नहीं हो पाए। मैं बहुत बीमार थी और अभी परसों मेरा देहावसान हुआ है। फिर वह बोली कि चलो कहीं बैठ कर बात करते हैं। प्रभात