लो फिर से चांडाल आ गया

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(१) ये एक नकारात्मक व्यक्ति के बारे में एक नकारात्मक कविता है। चाहे ऑफिस हो या घर , हर जगह नकारात्मक प्रवृति के लोग मिल जाते है जो अपनी मौजूदगी मात्र से लोगो में नकारात्मक भावना को पनपाने में सक्षम होते हैं। कविता को लिखने का ध्येय यह है कि इस तरह के व्यक्ति विशेष ये महसूस करें कि उनकी इस तरह की प्रवृतियाँ किसी का भी भला नहीं सकती । इस कविता को पढ़ कर यदि एक व्यक्ति भी अपनी नकारात्मकता से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो कवि अपने प्रयास को सफल मानेगा। चांडाल आफिस में भुचाल