अब लौट चले - 7

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कुछ देर हम दोनों यूही बैठे रहे.... मै दोषी थी वो निर्दोष था मै सिर झुकाये बैठी थी अभिषेक मुझें देख रहा था... बिलकुल मनु के गुण वही मिज़ाज़ वही शक्ल सूरत संस्कार मनु ने अभिषेक को काफ़ी अच्छे दिये हैं उसके हर लफ्ज़ो में कितनी मर्यादा हैं... कितना धैर्य हैं इतना तो अमन और शिखा में नहीं... मुझे परवरिश का अंतर साफ दिखाई दें रहा था उन दोनों से कितना अलग हैं अभिषेक... क्या सोच रहीं हैं संध्या जी...? यही ना आप जिससे मिलने आयी वही नहीं दिखाई नहीं दें रहें हैं... यही ना...? इस बात पर मैने उसे उत्सुकता वस