बात सीधी सी थी, लेकिन उसकी गंध बेहद तीखी थी. तभी तो जया की ही नहीं पूरे मोहल्ले की नाकें अपने अपने ढंग से सुगबुगा गयी थी. नयी-नयी अकाउन्ट्स अफसर की प्रमोशन पाए रामलाल ने कहा था, “सब पैसे का मामला है भाई.” फिर अपनी तीन बेटियों की माँ, दसवीं पास पत्नी सावित्री को सुनाते हुए बोले थे, “अजी लड़का कोई कम नहीं है लडकी से. लडकी कॉलेज में पढ़ाती है तो क्या हुआ? लड़के का लाखों का बिज़नस है. लडकी का रंग-रूप गुण देख कर ही उन के घर जा कर रिश्ता माँगा था. पर ये माँ-बेटी तो बेगैरत निकलीं. ऐसा अच्छा रिश्ता….. मैं भी देखूंगा, अब कौन सा आईएएस मिलता है इनको. अरे फ़ालतू बातें बनाती हैं कि लडकी ने मना कर दिया. मना तो उस की माँ ने किया है. विधवा औरत की सोने की मुर्गी…. ऐसे कैसे हाथ से जाने दें?” वितृष्णा से उन का मुंह अजीब सा हो आया था. और भी जाने क्या-क्या बडबडाते रहे.