इन्तज़ार

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दोपहर का समय था मैं और अनूप अपनी फील्ड ट्रेनिंग पर चेन्नई जा रहे थे , तभी हमारी ट्रेन नागपुर पहुंची और हमें अपनी सामने वाली नीचे की सीट का बलिदान करने का समय आ गया था क्योकि उस सीट के असली हकदार आ चुके थे चुकी मेरी सीट ऊपर की थी और अनूप की नीचे वाली थी l ट्रेन में वैसे भी सेकंड वातानुकूलित कोच में नीचे की सीट की बात ही कुछ और होती है आप बाहर का पूरा नज़ारा देख सकते है और आने वाले सभी स्टेशन का पता चलता रहता है वैसे